राज की रिपोर्ट ( 9334160742 ) – महिला सशक्तीकरण के बारे में जागरूकता के लिए शाश्वती भोसले भारत भर के गांव-शहर में साइकिल चला रही हैं। यह साइकिल यात्रा त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से 6 मार्च 2019 से अपनी यात्रा की शुरुआत करते हुए शाश्वती भोसले बिहारशरीफ पहुंची। शाश्वती भोसले महिला सशक्तिकरण के बारे में जागरूकता पैदा करना चाहती हैं। ‘महिला सशक्तीकरण’ के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से, महाराष्ट्र की एक युवा लड़की भारत के प्रत्येक राज्य के मुख्य शहरों व गांवों में साइकिल से जा-जाकर महिलाओं व लडकियों को जागरूक कर रही है। भोसले महाराष्ट्र के लातूर जिले में स्थित महाराष्ट्र उदयगिरी महाविद्यालय से माइक्रोबायोलॉजी में स्नातक की हैं।
भोसले एक मध्यवर्गीय महारास्ट्रियन और महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले के धरमबाद के निवासी हैं।
इनके माता मीना भोसले, पिता शशांक भोसले, भाई शत्रुंजय भोसले और बहन शर्मिष्ठा भोसले हैं एक व्यवसायी हैं। उनकी माँ श्रीमती मीना भोसले कर्तव्यनिष्ठ धर्मपरायण महिला हैं और पिता श्री शशांक भोसले एक राष्ट्र भक्त हैं, शाश्वती भोसले नौकरी TCS, WNS, कार्लसन वैगनलाइट ट्रैवल प्राइवेट लिमिटेड पुणे में कुल 6 वर्षों तक काम किया
भारत भर में कॉर्पोरेट फर्मों में छह साल से अधिक का पेशेवर अनुभव रखने वाले भोसले ने अपने जुनून का पालन करने के लिए ब्रेक लेने की योजना बनाई। “भारत की कॉर्पोरेट फर्मों में कार्यालय की राजनीति बहुत आम है और देश भर में बड़ी संख्या में महिला कर्मचारियों का शिकार होता है। यह मेरे अभिनव साइकिलिंग अभियान के पीछे मुख्य प्रेरणा शक्ति है, ये बातें भोसले ने कही।
पूर्वोत्तर भारत के त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से साइकिल यात्रा शुरू करने का उनका फैसला भारत के अन्य स्थानों की तुलना में वर्ष के इस समय क्षेत्र में प्रचलित अनुकूल मौसम की स्थिति के कारण आया। ये विचार उनके मित्र अफ्ताभ फरीदी के सलाह पर मार्च महीने से शुरू किया।
तीन महीने से अधिक समय तक असम, त्रिपुरा और मिजोरम की यात्रा करने वाले पूर्वोत्तर के एक बड़े हिस्से में साइकिल चलाने के बाद अपने अनुभव को साझा करते हुए, युवा साइकिल चालक ने कहा कि मध्य या पश्चिमी हिस्सों में रहने वाले लोगों की तुलना में इस क्षेत्र की महिलाएं अधिक सशक्त हैं। मिजोरम के कुछ सीमावर्ती इलाकों में बहुत गरीबी है।
उन्होंने बताया कि बिहार राज्य में महिला “महिला सशक्तीकरण” काफी सराहनीय है, इस प्रदेश में “जीविका समूह” महिलाओं के बीच लोकप्रिय है। बिहार में “महिला सशक्तीकरण” के तौर पर सरकारी सेवा या राजनीति में आरक्षणों में 50 प्रतिशत मिलरहा है। इस तरह के कार्य देश में और कहीं भी नहीं हैं। यहाँ, जो महिलाएँ दूर के गाँवों में भी रह रही हैं, वे खेतों या कोई अन्य काम करके अपनी आजीविका कमा रही हैं। वे अपने घरों से बाहर निकलते हैं और त्योहारों और पारिवारिक अवसरों के दौरान आनंद लेते हैं। यह स्वयं में महिला सशक्तीकरण को संपूर्ण रूप से परिभाषित करता है, बताया कि बिहार में महिला सशक्तिकरण सिर्फ शहरी कामकाजी महिलाओं तक ही सीमित नहीं है बल्कि दूरदराज के कस्बों एवं गांवों में भी महिलाएं अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं। वे पढ़ी-लिखी हों या ना हों, अब किसी भी मायने में अपने पुरुष समकक्षों से पीछे नहीं रहना चाहती। अपनी सामजिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना वे अपने सामाजिक एवं राजनीतिक अधिकारों को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील हैं और साथ ही अपनी उपस्थिति भी महसूस करा रही हैं। भोसले ने कहा, मैं जून माह में बिहार में प्रवेश किया।
28 वर्षीय शाश्वती भोसले महिला सशक्तीकरण को धरातल पर उतारने का प्रयास करने जागरूक करने वाली ने कही कि महिलाओं के बीच कम उम्र में शादी यानि ’जल्दी शादी’ और गरीबी व कमजोर साक्षरता जैसे कुछ मुद्दे अभी भी पूर्वोत्तर समाज में व्याप्त हैं और इन मुद्दों को देश व राज्य के सरकार द्वारा जल्द से जल्द इस पर योजनायें चलाकर कम करना चाहिए।
भोसले ने अब तक अपने साइकिल यात्रा के लिए किसी भी प्रकार के सरकारी समर्थन की मांग नहीं की है, और न तो लिया है। शाश्वती भोसले अपने बचाए गये बचत से सब कुछ कर रही है, जो उसने अपनी पहले की नौकरियों से की थी। हालांकि, उसके परिवार के सदस्य और दोस्त मदद के लिए उधार देने में आगे थे। लेकिन किसी से अभी तक मदद नहीं लिया है। उन्होंने बताई कि दुनिया भर में 13 से 26 साल के युवाओं की सबसे बड़ी तादाद भारत में है। देश में वे किन परिस्थितियों में हैं इस पर ध्यान देना जरूरी है। अभी तक इन युवाओं में से बहुत से लोग अल्पशिक्षित हैं और अल्प रोजगार वाले निम्न हालात में जीरहे हैं। भारत में लड़कियों के लिए कुछ पहल तो हुई है लेकिन लड़कों के लिए (चाहें वे शहरी या ग्रामीण) सरकार ने कोई ऐसी योजना नहीं चलाई है।साइकिल यात्रा करते हुए शाश्वती भोसले को बिहारशरीफ के धरती पर पहुंचने पर नालंदा के साहित्यकों व कवियों और इतिहासकारों ने भव्यता के साथ पुष्प-गुच्छ और भगवान बुद्ध की प्रतिमा देकर स्वागत किया। स्वागत करने वालों में साहित्यकार लक्ष्मीकांत सिंह, साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, इतिहासकार तुफ़ैल अहमद खान सूरी, समाजसेवी कवि चन्द्र उदय कुमार मुन्ना, साहित्यकार बेनाम गिलानी, मगही कवि उमेश प्रसाद उमेश, धीरज कुमार, कवयित्री मुस्कान कुमारी सहित कई लोगों मौजूद थे ।