दीपक विश्वकर्मा ( 9334153201 ) उर्स के मौके पर खानकाह मोअज्जम से रात करीब 12 बजकर 20 मिनट पर परम्परागत तरीके से  बड़ी दरगाह के सज्जादा नशीन सैय्यद शाह सैफुद्दीन फिरदौसी ( पीर साहब ) डोली पर सवार होकर मशाल जुलूस के साथ रांची रोड होते हुए मख़्दूमे जहाँ के आस्ताने पर पहुंचे | जहां उन्होंने चादर पोशी कर दुआएं मांगी | इस मौके पर खानकाह मुनामिया पटना के सज्जादा नशीन शमीम मुनमि साहब ने न केवल नालंदा के लिए बल्कि सूबे बिहार और पूरे मुल्क के लिए 45 मिनट तक अमन की दुआएं मांगी | मशाल जुलुस की आगवानी बिहार शरीफ के अनुमंडल पदाधिकारी जेपी अग्रवाल ,लहेरी थाना इंस्पेक्टर , और डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम आज़ाद कालेज के डिपुटी चेयरमैन रूमी खान ने की |
मशाल जुलुस में शामिल लोग या मखदूम के नारे लगाते हुए पूरे जोशो खरोश के साथ बड़ी दरगाह पहुंचे |  इसके पूर्व खानकाह मोअज्जम महफिले शमा का आयोजन किया देर रात तक लोग परवर दिगार की इबादत में डूबे  रहे | रात के अँधेरे में रंग विरंगें रौशनी के बीच मखदूम साहब के मज़ार से नूर निकल रहा था |
 उर्स के पहले दिन हजारो की संख्या मे जायरीन बड़ी दरगाह पहुंचे | ऐसी मान्यता है कि जो भी लोग सच्चे दिल से मखदूम के दरबार में मन्नते मांगते हैं उनकी मुरादें जरूर पूरी होती है |  इनका जन्म 16 दिसम्बर 1263 को पटना के मनेर नामक स्थान में हुआ था | इनके पिता का नाम  यहीया मनेरी  और माता का नाम बीबी रजिया था | इन्होने दर्शनशाश्त्र   , आयुर्बेद और अंक  गणित की शिक्षा अपने गुरु हजरत शर्फुदीन  अबुतौआमा से ली थी | जबकि सूफी  की शिक्षा हजरत नाज़िबुद्दीन  फिरदौसी से ली , ये 65 वर्ष की आयु में 1327  को बिहारशरीफ आये थे और 122 वर्ष की उम्र  तक यानि  1284ई तक वे 57 वर्षो तक विना भेदभाव के शोषित पीड़ित  दलित मानव समुदाय की सेवा कि थी और इन्होने1380 में हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह दिया  |

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