एस कुमार की रिपोर्ट : नालंदा स्थित सूर्यपीठ बड़गांव वैदिक काल से सूर्योपासना का प्रमुख केंद्र रहा है। यह स्थान दुनिया के 12 अर्कों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि यहां छठ करने से हर मुराद पूरी होती हैं। यही कारण है कि देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु यहां चैत एवं कार्तिक माह में छठव्रत करने आते हैं। भगवान सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा बड़गांव से ही शुरू हुई थी, जो आज पूरे भारत में लोक आस्था का पर्व बन गया है।
भगवान कृष्ण के पौत्र साम्ब को मिली थी कुष्ठ रोग से मुक्ति

ऐसी मान्यता है कि महर्षि दुर्वाशा जब भगवान श्रीकृष्ण से मिलने द्वारिका गये थे, उस समय भगवान श्रीकृष्ण रुक्मिणी के साथ विहार कर रहे थे। उसी दौरान अचानक किसी बात पर भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र राजा साम्ब को हंसी आ गई। महर्षि दुर्वाशा ने उनकी हंसी को अपना उपहास समझ राजा साम्ब को कुष्ट होने का श्राप दे दिया। इस कथा का वर्णन पुराणों में भी है। इसके बाद श्रीकृष्ण ने राजा साम्ब को कुष्ट रोग से निवारण के लिए सूर्य की उपासना के साथ सूर्य राशि की खोज करने की सलाह दी थी। उनके आदेश पर राजा शाम्ब सूर्य राशि की खोज में निकल पड़े। रास्ते में उन्हें प्यास लगी। राजा शाम्ब ने अपने साथ में चल रहे सेवक को पानी लाने का आदेश दिया।

घना जंगल होने के कारण पानी दूर—दूर तक नहीं मिला। एक जगह गड्ढे में पानी तो था, लेकिन वह गंदा था। सेवक ने उसी गड्ढे का पानी लाकर राजा को दिया। राजा ने पहले उस पानी से हाथ—पैर धोया उसके बाद उस पानी से प्यास बुझायी। पानी पीते ही उन्होंने अपने आप में अप्रत्याशित परिवर्तन महसूस किया। इसके बाद राजा कुछ दिनों तक उस स्थान पर रहकर गड्ढे के पानी का सेवन करते रहे। राजा शाम्ब ने 49 दिनों तक बर्राक (वर्तमान का बड़गांव) में रहकर सूर्य की उपासना की थी।
